नैसर्गिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक यात्रा एक निरंतर,जीवन पर्यन्त चलने वाली वह प्रक्रिया है जो कि मनुष्य के जीवन के हर पड़ाव पर ‘स्वयं को स्वयं’ के दर्शन कराते हुए मानव जीवन के भविष्य के मार्ग को निरंतर उज्ज्वलता की ओर प्रशस्त करती रहती है!
‘स्वयं की खोज’ का आधार है मानसिक शांति, वैचारिक शांति – जिसकी प्राप्ति के लिए सबसे बेहतर और सरल तरीका है कि अपने आप को उस परम पिता परमात्मा के श्री चरणों में पूर्ण श्रद्धा भाव से समर्पित कर देना!
हमारी इस वक़्त की यात्रा ऐसी ही रही!
अबकी बार हम छत्तीसगढ़- उड़िसा ( ओरिस्सा ), बिहार, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में गए थे ।
जहां हमने बिहार,रायपुर, चंपारन ( चंपारण्य- श्री महाप्रभु जी की बैठक, चंपेश्वर महादेव, अग्नि कुंड, मधुवन),राजीम ( त्रिवेणी – पेरू, सोंढु,महानदी का संगम स्थान, कुलेश्वर महादेव,लोमश ऋषि आश्रम ),टीला ( टीलेश्वर महादेव मंदिर, रामोदर वीर हनुमान जी की ८१ फ़ीट ऊँची मूर्ति,नवग्रह देवमंदिर ),जगन्नाथ पुरी ( श्री जगन्नाथ जी मंदिर दर्शन, बंगाल समुद्रस्नान,शंकराचार्य मठ, बेड़ी हनुमान, जनकपुरी, चंदन तालाब,), चंद्रभागा ( समुद्र बीच सौंदर्य दर्शन), कोणार्क ( विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर), धवलगिरी ( बुद्ध भगवान स्तूप,धवलेश्वर महादेव, दया नदी, कलिंगा युद्ध, सम्राट अशोक का ह्रदय परिवर्तन स्थल), भुवनेश्वर ( लिंगराज महादेव, सिद्धेश्वर, मुक्तेश्वर ),साक्षी गोपाल , खंडगिरी ( जैन मंदिर), उदयगिरी ( विशाल जैन , बौद्ध गुफाएँ ), हावड़ा – कोलकाता ( हावड़ा ब्रिज,बेलूर मठ, दक्षिणेश्वर, १२ ज्योतिर्लिंग मंदिर सायन्स सिटी, मेट्रो ट्रेइन, विक्टोरिया गार्डन, म्युझियम, महाकाली मंदिर, कालीघाट, कागद्विप टापु,कुछ बेरिया,),और गंगा सागर जैसे स्थानों की यात्रा की! हालाँकि इन स्थानों पर यह हमारा तीसरी बार का प्रवास था, फ़िर भी हर बार की तरह कुछ नयी अनुभूतियों का एहसास हुआ!
चंपारण : चंपारन बिहार राज्य में स्थित है।
चंपारण बिहार के तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत भोजपुरी भाषी जिला है। हिमालय के तराई प्रदेश में बसा यह ऐतिहासिक जिला जल एवं वनसंपदा से पूर्ण है। चंपारण का नाम चंपा + अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्पा के पेड़ों से आच्छादित जंगल। बेतिया जिले का मुख्यालय शहर हैं। बिहार का यह जिला अपनी भौगोलिक विशेषताओं और इतिहास के लिए विशिष्ट स्थान रखता है। महात्मा गाँधी ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से सत्याग्रह की मशाल जलायी थी।
चंपारण बिहार के तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत भोजपुरी भाषी जिला है। हिमालय के तराई प्रदेश में बसा यह ऐतिहासिक जिला जल एवं वनसंपदा से पूर्ण है।
यहाँ पर वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक वल्लभाचार्य जी का जन्म हुवा था । श्री वल्लभाचार्य का जन्म चम्पारण जिला रायपुर में हुआ। प्रत्येक वर्ष वैशाख कृष्ण एकादशी को जन्मोत्सव चम्पारण में मनाया जाता है | उस समय उनके माता पिता दक्षिण से काशी तीर्थ यात्रा करने जा रहे थे। मार्ग में ही महाप्रभु का जन्म हुवा यहाँ पर महाप्रभु की छठी बैठक भी है | बीसवीं सदी में उनके अनुयायियों ने वल्लभाचार्य जी का एक प्रसिद्ध मंदिर बनवाया था ।
श्री चम्पेश्वर :भोले नाथ की यह पुरातन स्थली है| जहाँ वे जगत माता पार्वती श्री गणेश जी के साथ विराजमान है।
कोलकाता :भारत के पश्चिम बंगाल राज्य की राजधानी है और भारत के प्रमुख महानगरों में से एक है। प्रशासनिक रूप से यह कोलकाता ज़िले में स्थित है। कोलकाता हुगली नदी के पूर्वी किनारे पर बांग्लादेश की सीमा पर स्थित है ।कोलकाता भारत का दूसरा सबसे बड़ा महानगर तथा पाँचवा सबसे बड़ा बन्दरगाह है। इस शहर का इतिहास प्राचीन है। इसके आधुनिक स्वरूप का विकास अंग्रेजो एवं फ्रांस के उपनिवेशवाद के इतिहास से जुड़ा है। आज का कोलकाता आधुनिक भारत के इतिहास की कई गाथाएँ अपने आप में समेटे हुए है। यह नगर भारत के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तनों के प्रारम्भिक केन्द्र था। महलों के इस शहर को ‘आनन्द का शहर’ भी कहा जाता है।
बेलूर मठ : यह रामकृष्ण मिशन का मुख्यालय है, इसकी स्थापना 1899 में स्वामी विवेकानंद ने की थी, जो रामकृष्ण के शिष्य थे। यहां दक्षिण में शानदार मंदिर कोलकाता की संरक्षक देवी काली को समर्पित है। काली का अर्थ है “काला”। काली की मूर्ति की जिह्वा खून से सनी है और यह नरमुंडों की माला पहने हुए हैं। काली, भगवान शिव की अर्धांगिनी, पार्वती का ही विनाशक रूप है ।
हावड़ा ब्रिज :यह नाम दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यह पुल हावड़ा और कोलकाता को जोड़ता है यह पुल एक ऐतिहासिक पुल है इस पुल को ‘ रवींद्र सेतु’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पुल पूरी तरह से लोहे से बना है। जिसमें 2590 टन अच्छी गुणवत्ता का लोहा लगाया गया है।
यह पुल 1500 फीट लंबा और 71 फीट चौड़ा है। यह अपनी तरह का छठा सबसे बड़ा पुल है। आम तौर पर प्रत्येक पुल के नीचे खंभे होते हैं, जिस पर वह रहता है, लेकिन यह एक पुल है, जो इस नदी के दो किनारों और पचास मीटर की चौड़ाई के बाद, नदी के दूसरी ओर केवल चार स्तंभों पर टिका है। समर्थन के लिए कोई रस्सी आदि जैसे कोई तार नहीं। इस दुनिया के हजारों टन स्टील के शानदार स्टील गेटर्स ने खुद को चार स्तंभों पर इस तरह से रखा है कि उन्हें 80 साल तक इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा।
जगन्नाथ पुरी : पुरी का जगन्नाथ धाम चार धामों में से एक है। यहां भगवान जगन्नाथ बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजते हैं। हिन्दुओं की प्राचीन और पवित्र 7 नगरियों में पुरी उड़ीसा राज्य के समुद्री तट पर बसा है। जगन्नाथ मंदिर विष्णु के 8वें अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित है।इस मंदिर का सबसे पहला प्रमाण महाभारत के वनपर्व में मिलता है।
विशेषताएँ: हवा के विपरीत -लहराता ध्वज : श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर स्थापित लाल ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। ऐसा किस कारण होता है यह तो वैज्ञानिक ही बता सकते हैं। लेकिन यह निश्चित ही आश्चर्यजनक बात है!
-गुंबद की छाया नहीं बनती : यह दुनिया का सबसे भव्य और ऊंचा मंदिर है। यह मंदिर 4 लाख वर्गफुट में क्षेत्र में फैला है और इसकी ऊंचाई लगभग 214 फुट है। मंदिर के पास खड़े रहकर इसका गुंबद देख पाना असंभव है। मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है।
-चमत्कारिक सुदर्शन चक्र : पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है ।
-हवा की दिशा : सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है।
-गुंबद के ऊपर नहीं उड़ते पक्षी : मंदिर के ऊपर गुंबद के आसपास अब तक कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा गया। इसके ऊपर से विमान नहीं उड़ाया जा सकता। मंदिर के शिखर के पास पक्षी उड़ते नजर नहीं आते, जबकि देखा गया है कि भारत के अधिकतर मंदिरों के गुंबदों पर पक्षी बैठ जाते हैं या आसपास उड़ते हुए नजर आते हैं!
दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर : 500 रसोइए 300 सहयोगियों के साथ बनाते हैं भगवान जगन्नाथजी का प्रसाद। लगभग 20 लाख भक्त कर सकते हैं यहां भोजन। कहा जाता है कि मंदिर में प्रसाद कुछ हजार लोगों के लिए ही क्यों न बनाया गया हो लेकिन इससे लाखों लोगों का पेट भर सकता है। मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती।मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है; अर्थात सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है। है न चमत्कार!
-समुद्र की ध्वनि : मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है।
-रूप बदलती मूर्ति : यहां श्रीकृष्ण को जगन्नाथ कहते हैं। जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा विराजमान हैं। तीनों की ये मूर्तियां काष्ठ की बनी हुई हैं।यहां प्रत्येक 12 साल में एक बार होता है प्रतिमा का नव कलेवर। मूर्तियां नई जरूर बनाई जाती हैं लेकिन आकार और रूप वही रहता है। कहा जाता है कि उन मूर्तियों की पूजा नहीं होती, केवल दर्शनार्थ रखी गई हैं ।
-विश्व की सबसे बड़ी रथयात्रा : आषाढ़ माह में भगवान रथ पर सवार होकर अपनी मौसी रानी गुंडिचा के घर जाते हैं ।
यहां जगन्नाथपुरी में ही सागर तट पर बेदी हनुमान का प्राचीन एवं प्रसिद्ध मंदिर है। भक्त लोग बेड़ी में जगड़े हनुमानजी के दर्शन करने के लिए आते थे !
-महान सिख सम्राट महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को प्रचुर मात्रा में स्वर्ण दान किया था, जो कि उनके द्वारा स्वर्ण मंदिर, अमृतसर को दिए गए स्वर्ण से कहीं अधिक था।
-पांच पांडव भी अज्ञातवास के दौरान भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने आए थे। श्री मंदिर के अंदर पांडवों का स्थान अब भी मौजूद है। भगवान जगन्नाथ जब चंदन यात्रा करते हैं तो पांच पांडव उनके साथ नरेन्द्र सरोवर जाते हैं।
-कहते हैं कि ईसा मसीह सिल्क रूट से होते हुए जब कश्मीर आए थे तब पुन: बेथलेहम जाते वक्त उन्होंने भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए थे।
-9वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने यहां की यात्रा की थी और यहां पर उन्होंने चार मठों में से एक गोवर्धन मठ की स्थापना की थी।
-इस मंदिर में गैर-भारतीय धर्म के लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित है। माना जाता है कि ये प्रतिबंध कई विदेशियों द्वारा मंदिर और निकटवर्ती क्षेत्रों में घुसपैठ और हमलों के कारण लगाए गए हैं। पूर्व में मंदिर को क्षति पहुंचाने के प्रयास किए जाते रहे हैं।
गंगासागर:
“सारे तीर्थ बार-बार गंगासागर एक बार”
गंगासागर भारत के तीर्थों में एक महातीर्थ है। गंगाजी इसी स्थान पर आकर सागर में मिलती हैं। यहां मकर संक्रान्ति पर बहुत बड़ा मेला लगता है जहां लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए आते हैं। कहते हैं यहां संक्रान्ति पर स्नान करने पर सौ अश्वमेध यज्ञ और एक हजार गऊएं दान करने का फल मिलता है।भारत की नदियों में सबसे पवित्र गंगा नदी है जो गंगोत्री से निकल कर पश्चिम बंगाल में आकर सागर में मिलती है। गंगा का जहां सागर से मिलन होता है उस स्थान को ‘गंगासागर’ कहते हैं। इसे ‘सागरद्वीप ‘ भी कहा जाता है। यह स्थान देश में आयोजित होने वाले तमाम बड़े मेलों में से एक गंगासागर मेला के लिए सदियों से विश्वविख्यात है। हिन्दू धर्मग्रन्थों में इसकी चर्चा मोक्षधाम के तौर पर की गई है, जहां मकर संक्रान्ति के मौके पर दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना लेकर आते हैं और सागर-संगम में पुण्य की डुबकी लगाते हैं।
पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिले में स्थित इस तीर्थस्थल पर कपिल मुनि का मंदिर है, !मान्यता है कि यहां मकर संक्रान्ति पर पुण्य-स्नान करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। मान्यता है कि गंगासागर की तीर्थयात्रा सैंकड़ों तीर्थयात्राओं के समान है। हर किसी को यहां आना नसीब नहीं होता। इसकी पुष्टि एक प्रसिद्ध लोकोक्ति से होती है, जिसमें कहा गया है, सारे तीर्थ बार-बार, गंगासागर एक बार। हालांकि यह उस जमाने की बात है जब यहां पहुंचना बहुत कठिन था। आधुनिक परिवहन और संचार साधनों से अब यहां आना सुगम हो गया है।
ऐसी मान्यता है कि ऋषि-मुनियों के लिए गृहस्थ आश्रम या पारिवारिक जीवन वर्जित होता है, पर विष्णु जी के कहने पर कपिलमुनि के पिता कर्दम ऋषि ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया पर उन्होंने विष्णु भगवान के समक्ष शर्त रखी कि ऐसे में भगवान विष्णु को उनके पुत्र रूप में जन्म लेना होगा। भगवान विष्णु ने शर्त मान ली और कपिलमुनि का जन्म हुआ। फलत: उन्हें विष्णु का अवतार माना गया। आगे चल कर गंगा और सागर के मिलन स्थल पर कपिल मुनि आश्रम बना कर तप करने लगे। इस दौरान राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ आयोजित किया। इस के बाद यज्ञ के अश्वों को स्वतंत्र छोड़ा गया। ऐसी परिपाटी है कि ये जहां से गुजरते हैं, वे राज्य अधीनता स्वीकार करते हैं। अश्व को रोकने वाले राजा को युद्ध करना पड़ता है। राजा सगर ने यज्ञ अश्वों की रक्षा के लिए उनके साथ अपने 60 हजार पुत्रों को भेजा।अचानक यज्ञ अश्व गायब हो गया। खोजने पर यज्ञ अश्व कपिल मुनि के आश्रम में मिले। फलत: सगर पुत्र साधनारत ऋषि से नाराज हो उन्हें अपशब्द कहने लगे। ऋषि ने नाराज हो कर उन्हें शापित किया और उन सभी को अपने नेत्रों के तेज से भस्म कर दिया। मुनि के श्राप के कारण उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकी। काफी वर्षों के बाद राजा सगर के पौत्र राजा भागीरथ कपिल मुनि से माफी मांगने पहुंचे। कपिल मुनि राजा भागीरथ के व्यवहार से प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि गंगा जल से ही राजा सगर के 60 हजार मृत पुत्रों का मोक्ष संभव है। राजा भागीरथ ने अपने अथक प्रयास और तप से गंगा को धरती पर उतारा। अपने पुरखों के भस्म स्थान पर गंगा को मकर संक्रान्ति के दिन लाकर उनकी आत्मा को मुक्ति और शांति दिलाई। यही स्थान गंगासागर कहलाया। इसलिए यहां स्नान का इतना महत्व है।
सुन्दरबन निकट होने के कारण गंगासागर मेले को कई विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। तूफान व ऊंची लहरें हर वर्ष मेले में बाधा डालती हैं। परन्तु परम्परा और श्रद्धा के सामने हर बाधा बौनी हो जाती है। गंगा के सागर में मिलने के स्थान पर स्नान करना अत्यन्त शुभ व पवित्र माना जाता है।
गंगासागर के संगम पर श्रद्धालु समुद्र देवता को नारियल और यज्ञोपवीत भेंट करते हैं। समुद्र में पूजन एवं पिण्डदान कर पितरों को जल अवश्य अर्पित करना चाहिए। गंगासागर में स्नान-दान का महत्व शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है। स्थानीय मान्यतानुसार जो युवतियां यहां पर स्नान करती हैं, उन्हें अपनी इच्छानुसार वर तथा युवकों को स्वैच्छिक वधू प्राप्त होती है। अनुष्ठान आदि के पश्चात् सभी लोग कपिल मुनि के आश्रम की ओर प्रस्थान करते हैं तथा श्रद्धा से उनकी मूर्ति की पूजा करते हैं। मन्दिर में गंगा देवी, कपिल मुनि तथा भागीरथ की मूर्तियां स्थापित हैं।
इस द्वीप में ही रायल बंगाल टाइगर का प्राकृतिक आवास है। यहां मैन्ग्रोव के दलदल, जलमार्ग तथा छोटी-छोटी नदियां, नहरें भी हैं। बहुत पहले इसी स्थान पर गंगा जी की धारा सागर में मिलती थी किंतु अब इसका मुहाना पीछे हट गया है। अब इस द्वीप के पास गंगा की एक बहुत छोटी-सी धारा सागर से मिलती है। यहां अलग से गंगा जी का कोई मंदिर नहीं है।
गंगासागर गंगा नदी और बंगाल की खाड़ी का मिलन स्थल है। गंगासागर वास्तव में एक टापू है जो गंगा नदी के मुहाने पर है। यहां काफी आबादी है। यह पूरी तरह से ग्रामीण इलाका है। यहां की भाषा बंगलाभाषा है ।
कुल मिलाकर , इन दिव्य,पवित्र स्थान से एक उम्दा, अलौकिक शांति मिलती है । सच्ची श्रद्धा से देव दर्शन करने से हमारे अंतर्मन में दिव्य ऊर्जा का संचार होता है, Divine power creat होता है ।
-डॉ .दक्षा जोशी ।
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