नारी सशक्तिकरण के नारों से,गूंज उठी है वसुंधरा,
संगोष्ठी, परिचर्चाएं सुन-सुन, अंतर्मन ये पूछ पड़ा।
वेद, पुराण, ग्रंथ सभी,
नारी की महिमा दोहराते,
कोख में कन्या आ जाए,
क्यूं उसकी हत्या करवाते?
कूड़े, करकट के ढेरों में,
कुत्तों के मुंह से नुचवाते,
बेटे की आस में प्रतिवर्ष,बेटियां घरों में जनवाते ।
कोख जो सूनी रह जाए ,अनाथाश्रमों की फेरी लगाते,
गोद में बालक ले लेते,बालिका को हैं ठुकराते।
गुरुद्वारे, मंदिर, गिरजे, मस्जिद, जा-जा नित शीश नवाते,
पुत्र-रत्न पाने की चाहत,ईश्वर को भी भेंट चढ़ाते।
चांदी के सिक्कों के प्रलोभी, दहेज की बलि चढ़ा देते,
पदोन्नति की खातिर, सीढ़ी इसे बना लेते।
मनचले, वाणी के तीरों से, सीना छलनी कर देते,
वहशी, दरिंदे, पशु,असुर, क्यूं हवस अपनी बुझा लेते।
सरस्वती, लक्ष्मी, शीतला, नारी दुर्गा भी बन जाए,
मनमोहिनी, गणगौर सी,काली का रूप भी दिखलाए।
शक्ति को ना ललकारो, इसको नारी ही रहने दो,
करुणा, ममता की सरिता ये,कल-कल शीतल ही बहने दो ।नारी तो बस नारी है
नारी का गुणगान ना आँको भैया
नारी तो बस नारी है।
अनंत काल से आज तक
नारी ही रही है जिसने हर
कठिन समय में भी
कंधे से कंधा मिला
दिया पुरुषों का साथ।
फ़िर भी पुरुषप्रधान
इस देश में ना मिल सका
नारी को मान…!
नारी तो बस नारी है।
प्यार और दुलार की मूर्ति नारी
ममता की मूर्ति है न्यारी
बच्चों से लेकर बूढ़ों तक
सभी को सँवारती है
यह नारी।
कभी सास तो कभी बहू
कभी बेटी तो कभी माँ
बनकर हर उम्मीद पर
खरी उतरती है नारी।
नारी तो बस नारी है
उसकी महिमा जो समझ जाएँ
वह इस दुनिया से तर जाएँ!
नारी का सम्मान करो
उसे भी उड़ने दो गगन में
अपनी स्वतंत्रता से-
और फ़िर देखो
नारी का असली रूप
जो कभी दुर्गा, तो कभी सरस्वती
कभी लक्ष्मीबाई तो कभी कालका
का रूप दिखाकर
जग को न्याय का उचित
रास्ता दिखलाती है नारी
नारी तो बस नारी है
नारी तो बस नारी है।
-डॉ .दक्षा जोशी ।
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