Views: 1339
Read Time:51 Second
” कमल में से कलम”
शब्द-साधना पथ की मैं
एक आश भरी अन्वेषी हूँ
सतत चलूँ इस पथ पर मैं
माँ, मुझ को आशीष दे।
सारी विद्या का कोश खरा
अमित ज्ञान का सिंधु धरा
हंस सी पग पाऊँ मैं
माँ, मुझको आशीष दे।
जगती के अक्षय पात्र तले
क्यों लूँ नाप अमिय-रस बोलो माँ
बन जाऊँ उसी की एक बूंद मैं
माँ, मुझको आशीष दे।
यश-कीर्ति की चाह नहीं
बस कोलाहल से थकी हूँ मैं
हो जाऊँ वीणा सी झंकृत मैं
माँ, मुझको आशीष दे।
इस पथ पर चलते-चलते
जब मिलें अमर्ष के पंक मुझे
कलम जो मिल जाए तो,
कमल सी खिल जाऊँ मैं
माँ, मुझको आशीष दे।
-डॉ. दक्षा जोशी।