“करिश्मा कुदरत का “
कुदरत का करिश्मा है,
देखो चारों तरफ हरियाली है,
हम इनको हैं काटते और यह करती हमारी रखवाली है।
कुदरत ने क्या ख़ूब रंग दिखाया है,
इंसानों को प्रकृति दोहन का सबक सिखाया है,
घर में क़ैद होने के बाद
समझ आया है,
कि क़ुदरत को हमने
कितना रुलाया है!
पर्वत से सीखो गर्व से
शीश उठाना,
सागर से सीखो
जी भरकर लहराना,
प्रकृति नहीं सिखाती
किसी को ठुकराना,
इसे बस आता है
सबको अपनाना।
सुहाना मौसम, हवा का तराना,
ख़ुशरंग है प्रकृति का हर नज़ारा।
हवा की सरसराहट,
चिड़िया की चहचहाहट,
समुद्र का शोर,
जंगलों में नाचते मोर,
इनका नहीं कोई मोल,
क्योंकि कुदरत है अनमोल।
गगनचुंबी पहाड़ी,
ऊंचाई की ख़ामोशी ,
सूरज की रोशनी,
चंदा की चांदनी,
क़ुदरत की मदहोशी,
इनका कर्ज चुका सकती है
सिर्फ़ सरफरोशी।
नदी, पहाड़, जंगल और झरने ये सब हैं प्रतीक निस्वार्थ के,
आओ इनको संरक्षित कर सुरक्षित करें जीवन अपनों के।
जंगल हैं, तो किसके हैं,
नदी है, तो है किसकी,
ये पेड़, पहाड़ और झरने,
ये सारी प्रकृति है किसकी,
इन बातों को ध्यान में रखकर उठाना अपनी कुल्हाड़ी!
वरना प्रकृति दिखाएगी ऐसा रूप, मात खा जाएंगे बड़े से बड़े खिलाड़ी।
गर करोगे पेड़ और पौधों को नष्ट,
जल्द ही ख़त्म हो जाएगा
मानव जीवन का पूरा चक्र।
पेड़ तो हैं मानव जीवन का आधार,
इसको तो संरक्षित करो मेरे यार।
दुनिया वो नहीं जो दिखती है,
दुनिया तो प्रकृति के सात रंगों से ही खिलती है।
दुनिया में तुम्हें वही मिलता है,
जो तुम दूसरों को देते हो,
प्रकृति ही एक ऐसी व्यवस्था है, जो सिर्फ़ देती है,
बदले में कुछ लेती नहीं।
इस नश्वर जीवन में कुछ भी
मुफ़्त का नहीं है,
सिर्फ प्रकृति ही वो सुविधा है,
जो मुफ़्त में सब कुछ देती है।
तुम्हारी गलतियां एक दिन तुम्हारा काल बनेगी,
पेड़ लगाओं और अपनी
गलतियों को सुधारों।
पता नहीं हम अपनों से क्यों रिश्तों को तोड़ देते हैं,
प्रकृति फ़िर भी किसी न किसी बहाने हमसे रिश्ता जोड़ लेती है।
भूलकर भी मत काटना किसी पेड़ को, इनमें भी बसती है जान,
नहीं रहेंगे अगर पेड़,
तो यह धरती हो जाएगी सुनसान।
आएगा एक ऐसा वक़्त ,
जब सांस लेना हो जाएगा दुश्वार,
अभी से लगाओ पेड़,
नहीं तो जीवन हो जाएगा बेकार।
अगर अगली पीढ़ी को देनी है
चैन की सांस,
लगाओ अनगिनत पेड़ और संरक्षित करो पूरा जहान।
प्रकृति मुफ़्त में हवा
बेशकीमती देती है,
सांस लेने और ज़िंदा रहने का आधार देती है,
लोग वेंटिलेटर के ऑक्सीजन को कीमती समझते हैं,
ज़िंदगी देने वाले पेड़ और प्रकृति से खिलवाड़ करते हैं।
आओ, हम सब मिलकर,
सन्मार्ग करें प्रकृति की
मुहब्बत का,
क्योंकि वही तो है
करिश्मा कुदरत का!
-डॉ दक्षा जोशी ।
अहमदाबाद
गुजरात ।