“ लक्ष्य”
हर किसी के जीवन में,
होता है अपना लक्ष्य।
कोई पा लेता है मेहनत करके
तो कोई खो जाता है इस भीड़ में।।
हंसने वाले भी बहुत मिले,
टांगे भी खिचने की कोशिश की गई!
क़दम अभी न पीछे हठे हैं,
न कभी ये पीछे हटने वाले हैं!
चाहे साथ मिले या न मिले मुझको,
या फिर मुश्किलें आए हज़ारों !
कोशिशें कभी न कम होगी,
चाहे प्रयास क्यों न करना पड़े लाखों!
लंबे हैं अभी भी रास्ते,
मंज़िल भी अभी दूर है।
मेहनत बस करते जा रही हूँ ,
लक्ष्य को पाने का है पूरा जो जुनून!
लक्ष्य रथ पर चढ़कर,
शूल पथ पर चलकर,
गिर के उठ, उठ के गिर कर,
रथ को बढ़ाना है !!
नींद चैन भूलकर,
दिन-रात एक कर,
एक ही स्वर मैं गाऊ,
रथ को चलाना है !!
जीवन को सन्यासी कर,
यज्ञ और हवन कर,
तन मन धन सब,
तप में लगाना है !!
हर बाधा को पार कर,
हर हार को भूलकर,
यही मन में धारकर,
लक्ष्य मुझे पाना है !!
अपने लक्ष्य को पाने की भूख
न मिटी हैं मिटने देंगे हम,
चाहे राह में हो अत्यंत बाधाएं
उनसे टकराने का नहीं कोई ग़म !मनको सामना करना होगा
जीवन में अपने भय का,
डर से भी बड़ा निर्माण करेंगे
आत्मविश्वास अपने हृदय का।
वह सफलता किस काम की
जिसमें न हो संघर्ष का तराना,
असफलता से सीखा है हमने
गिरना ,गिरकर उठ जाना,।
बड़े दिनों के उपरांत लगी है
अब जो इस हृदय में आग,
जब तक न पूरे हो जाते
मिटने न देंगे सपनों का राग।
दृढ़ विश्वास है दिल में
सफल बनेंगे हम एक दिन,
भर लिया उर में साहस
करेंगे आसान ,हर राह कठिन।
उम्मीद की न हो कोई किरण
पर होगा वही जो चाहेंगे हम,
चलकर मुश्किल रस्तों पर
पाएँगे लक्ष्य खाई है कसम।
समस्याएँ, बाधाएँ आएंगी
ये जीवन की अनिवार्य कहानी है,
पाकर सफलता ये सबको
एक दिन हमें सुनानी है।
माना कि लक्ष्य की राह में
आते हैं घनघोर अँधेरे,
संघर्ष, मेहनत और लगन से
पूरे होंगे जरूर सपने हमारे ।
लक्ष्य को समक्ष रख,
दिन रात परिश्रम कर ,
विघ्न बाधाओं से तू ,
बिल्कुल नहीं अब डर !
है सीने में गर अगन,
कुछ कर गुज़रने के लिए,
सोच मत हो जा मगन,
आरज़ुओं को पाने के लिए!
क्या हवा है, क्या फिज़ा है,
तू देख तो कितना मज़ा है,
पसीने से लथ-पथ होकर,
शीतल जल का अपना मज़ा है।।
लक्ष्य-विहीन हो कर जीवन,
कुछ और नहीं केवल सज़ा है,
नई उमंग नई तरंग,
जोश-जवानी के संग,
साहस से पूर्ण अंग-अंग,
शत्रु भी देख हो जाये दंग।।
है दम कहां किसी और में,
जो जीत ले हमारी ये जंग।।
अम्बर से ऊँचा लक्ष्य हो,
तुच्छ दिखता विपक्ष हो,
कोई ज़ोर नहीं, कोई तोड़ नहीं,
मजबूत ऐसा पक्ष हो।।
धरा पर अवसरों की,
है कोई कमी नहीं,
पीछे जो हमने खोया,
आँखों में अब नमी नहीं।।
अवसर अनंत है यहाँ,
तू सोच ले जाना कहाँ,
अब मत देख यहाँ-वहाँ,
अर्जुन की भाँति नयन को,
टिका दे लक्ष्य है जहाँ ।।
बाधाएं हैं लाख आतीं
उनके मुताबिक ढल रहे हैं
मिले जीत या हार कुछ भी
अब हम निकल पड़े हैं!
चक्रव्यूह भेदने को जग का
हम अभिमन्यु से निकल पड़े हैं!
मुसाफिर हैं हम यारों
लक्ष्य ढूंढने चल पड़े हैं!
-डॉ दक्षा जोशी
पामग्रिन्स एपार्टमेन्ट-
बी-४१,४२
प्रह्लाद नगर,
अहमदाबाद
गुजरात ।