
“ क्या है नारी “
नारी अबला नहीं सबला है l अपने चरित्र बल से, साधना से ,त्याग से,नारी अपने कुल की समाज की उद्धारक बन जाती है ll
आज की नारी पुरुष से बराबरी से चल रही है। महिलाएं सातवें आसमान पर झंडा गाड़ कर कल्पना चावला बन रही है। किरण बेदी बनकर अपराधियों को पकड़ रही है।अरुणा राय और मेघा पाटकर बनकर सामाजिक अन्याय से जूझ रही है। प्रतिभा पाटिल जैसे सर्वोच्च पद पर आसीन है।आज की नारी घर के कामकाज के अलावा पढ़ लिख कर दोहरी जिम्मेदारी निभा रही है घर के कामकाज ओर नोकरी करना नारी के लिए दाएं हाथ का काम है। फ़िर पुरुष क्यों नहीं समझता कि जो नारी अपने घर अपन बच्चे और अपने परिवार के लिए अपना पूरा जीवन दे देती है,तो उसका सम्मान करे !ना कि अपमान ! आज हमारे देश की योग्य लड़कियाँ देश विदेश में रहकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही हैं । वे कुशल डॉक्टर, इंजीनियर, आई.ए. एस. अफसर तथा पुलिस की बड़ी नोकरियो एवं सेना में काम कर रही हैं । कुछ ऐसे सेवा के क्षेत्र भी हैं , जिसमें महिलाएं अपनी अग्रणी भूमिका निभाती है। नर्सिंग, शिक्षा, समाज तथा समुदाय सेवा में महिलाओ की संख्या काफ़ी हैं।
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नभ पगतल में पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुंदर समतल में”
भारत तो प्राचीन काल की नारियाँ हों या वर्तमान में इंदिरा गांधी, कल्पना चावला, सरोजिनी नायडू जैसी आधुनिक महिलाएं, सभी ने अपने-अपने हिस्से का योगदान देकर समाज को समृद्ध किया है। प्राचीन काल से ही गार्गी, अनुसूया, अत्रि, मैत्रेयी, सीता, सावित्री जैसी विदुषी महिलाओं से भरा है इतिहास साक्षी है, जब-जब जहाँ-जहाँ शक्ति और बुद्धि की आवश्यकता पड़ी वहाँ-वहाँ नारी ने अपना अमूल्य सहयोग एवं बलिदान दिया।
प्रथम शिक्षक-
शिशु की प्रथम शिक्षिका बन वह समाज के लिए एक उत्तम चरित्रवान नागरिक बनाती है। क़दम -क़दम पर उसका मार्गदर्शन कर उसे प्रेरित करती है। कहा भी गया है- प्रत्येक मनुष्य की सफलता के पीछे किसी-न-किसी रूप में एक नारी का ही हाथ होता है। बंद दरवाजों के पीछे घुटती, सिसकती नारी की आहें अपशगुन को ही निमंत्रण देती हैं-कहा भी गया है ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता।”
नारी ईश्वर का वरदान-
नारी ईश्वर की बनाई हुई भावुक कृति है, प्राकृतिक रूप से कोमल होने पर भी वह शक्ति की स्रोत है।यही कारण है कि सृष्टि को जन्म देने का कार्यभार प्रकृति ने उसे ही सौंपा है। स्त्री और पुरुष गृहस्थी रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं।
समाज निर्माण मे सहायक –समाज के निर्माण में नारी की भी वही भूमिका है जो एक पुरुष की है। वर्तमान समाज में नारी दोहरी भूमिका निभाती है साथ ही दूसरी ओर पुरुष के साथ क़दम से क़दम मिलाकर देश व समाज के लिए उपयोगी निर्माण कार्यों में लगी है। समाज का कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहाँ नारी ने अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराई। अब वह स्वयं शिक्षित होकर शिक्षा का प्रचार एवं प्रसार कर रही है। देश की राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सक्रिय कार्यकर्ता, नेता, विभिन्न कंपनियों की व्यवस्थापिका होना उसकी उपलब्धियों का सशक्त प्रमाण है। आज वह न्यायालयों में मात्र अपने हक की गुहार लगाती लाचार व बेबस स्त्री नहीं रह गई बल्कि जज की कुर्सी पर बैठकर कानून की मोटी मोटी किताबों को पढ़कर निर्णय सुनाती है। उसने अपने अदम्य बल, शक्ति व साधन से इस पुरुष प्रधान समाज को चुनौती दे दी है ।अतः यह कहा जा सकता है कि आज नारी नव चेतना व नव जागृति की प्रतीक बन गई है। अब नारी को गुमराह करना आसान नहीं। “कोमल है कमजोर नहीं शक्ति का नाम ही नारी है।” केवल नारी ही सभी के प्रति समान भाव से सोचती है l नारी शक्ति का अनुमान लगाना नामुमकिन है l नारी एक ऐसा चरित्र है, जो प्रत्येक के विषय में सोचती है l चाहे वह परिवार हो,समाज हो या फ़िर देश हो l अपने परिवार के लिए व्रत, पूजा आदि कर अपने घर की समृद्धि और अपने परिवार की लंबी आयु की कामना करती है l दूसरी ओर शिक्षित होकर वह अपने समाज की और देश के लिए अनमोल उपलब्धियां हासिल करती है l
आइए, समाज की ऐसी समर्पित नारियों के प्रति कम नया दृष्टिकोण अपनायें और नूतन समाज की स्थापना करें ।
- डॉ दक्षा जोशी
अहमदाबाद
गुजरात ।