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रंग दे मुझको अपनी प्रीत में,
कान्हा ! मैं हूँ तेरी दीवानी।
तेरी मुरली की धुन की,
मैं हूँ प्रेमदिवानी।
न मैं मीरा, न मैं राधा,
मैं तो हूँ बस सीधी सादी,
देकर भक्ति की शक्ति अपनी,
पूर्ण करो करो ये जीवन आधा।
न मैं सीता, न मैं शबरी,
न राधा, न मीरा।
पर तुम श्याम वही
मेरे घनश्याम,
राम वही रघुवीरा।
न मैं राधा, न मैं मीरा…!
मैं तो तेरी प्रेम दीवानी,
तेरी धुन में हूँ मस्तानी।
मैं हूँ एक जोगन और
एक फ़कीरा,
न मैं राधा न मैं मीरा…!
मोह नही मुझे, प्रेम में बाँधों,
मुझको अपना मीत बना लो।
ऐसा तरासो मुझको प्रियवर,
बन जाऊं मैं कोरक से हीरा।
न मैं राधा न मैं मीरा…!
भाव सागर में, मैं डूबी हूँ।
जाने किस सीपी की मोती हूँ।
चुनकर अपनी माला में मुझको,
हरलो एकांकी जीवन की पीरा।
न मैं राधा न मैं मीरा…!
-डॉ दक्षा जोशी
अहमदाबाद
गुजरात ।