शीर्षक-“ शुभ विवाह “
दो सपन आज मिलकर एक हुए
एक ही आज दोनों रतन हो गए।
दो जगह जी रहीं एक ही ज़िन्दगी,
एक ही हार दोनों सुमन हो गए।
चाँद से चांदनी का मिलन है यहां,
दो मधुर कल्पनाओंका ऐक्य!
मोद का आज दिन हर्ष की रात है,
क्योंकि दोनों के पूरे सपन होगए।
बालपन की नदी के युगल तीर पै,
जो सजाए उमंग की तस्वीर थे।
दो किरण और दो हिरण कीतरह,
एक ही ठौर चारों नयन हो गए।
आज गौरीश को है भवानी मिली,
या मिली इंद्र को उनकी शची।
स्वर्ग से देखकर दिव्यपाणिग्रहण,
है मगन हर्ष में देवगण हो गए!
कोई देवाटवी का प्रखर कल्पतरु,
सुरवाटिका की सुधरवल्लरी।
अनजान पथ के अनोखे पंथी ,
एक ही सूत्र में हो स्वजन हो गए।
मुस्कुराती रहे भाग्य की वाटिका,
जब तक हो बीच मंदाकिनी।
युग्म बंधन तुम्हारे चिरंतन रहे,
जैसे रवि उषा के मिलन हो गए।
-डॉ दक्षा जोशी
अहमदाबाद
गुजरात ।
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